सम्मान के बहाने कुछ कह रही है सरकार


स्वतंत्र मिश्र
हर साल की तरह इस साल भी पद्म सम्मान की घोषणा गृह मंत्रालय ने कर दिया। इस बार सरकार ने अपने खुद के बनाए नियमों को ताक पर रखकर 120 सम्मान देने की सीमा का उल्लंघन कर कुल 128 लोगों को सम्मानित करने का फैसला किया। देखना दिलचस्प होगा कि सरकार ने अपनी ही सीमा को किन विवशताओं की वजह से तोड़ने की कोशिश की। क्या इस सीमा को तोड़कर कुछ ऐसे लोगों को सम्मानित किया गया है, जिसने वास्तविकता में समाज को किसी रूप में आगे बढ़ने में मदद पहुंचाई हो। नहीं, ऐसा कुछ भी है। सरकार ने अपने बनाए नियमों का उल्लंघन इसलिए किया क्योंकि उसे अपने कुछ नुमांइदों और लूट की व्यवस्था को चलाने में सहायक लोगों को सम्मानित करना था। साफ सी बात है कि फेहरिस्त में व्यापार और उद्योग (काॅरपोरेट) के लोगों को शामिल करना था। इस समय सरकार पूरी तरह काॅरपोरेट के हित को ध्यान में रखकर विकास के नाम पर ज्यादातर फैसले कर रही है। यही वजह है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में पोस्को, जिंदल, मित्तल का खजाना भरने के लिए राज्य और केंद्र सरकार अपने लोगों के हाथ काट रही है। उसका सीना गोलियों से छलनी करने में कोई संकोच नहीं दिखा रही है। खनिज और संसाधन की लूट के लिए लोगों से उनकी जल, जंगल और जमीन छीन रही है। बेहतर यह होगा कि आप पद्म सम्मान पाने वाले लोगों की लंबी-चैड़ी सूची पर निगाह डालें। चीजें आपके सामने बिल्कुल पानी की तरह साफ हो जाएंगी। पद्म भूषण सम्मान पाने वालों में के एस. क्रिस गोपालकृष्णन (इंफोसिस), वाई़़. एस़. देवेश्वर (आईटीसी), के. अंजी रेड्डी (डाॅ. रेड्डी लेब्रोटरीज), अनलजीत सिंह (मैक्स ग्रुप्स), आर. एस. पवार (एनआईआईटी), जी.वी.के. रेड्डी (जीवेके गु्रप्स), अजय चैधरी (एचसीएल) और चंदा कोचर (आईसीआईसीआई) शामिल हैं। जबकि एम. रफीक अहमद (फरीद ग्रुप्स), के. राघवेन्द्र राव (फार्मा मेजर आॅर्चिड गु्रप्स) और सिंगापुर में बस चुके निवेशक सतपाल खट्टर को पद्म श्री सम्मान से सम्मानित किए जाने की घोषणा की गई।
व्यापार और उद्योग जगत से संबंध रखने वाले सभी नाम ऐसे हैं, जिनकी तनख्वाह लाखों में है। इनमें से ज्यादातर लोगों की खुद की अरबों-खरबों की पूंजी वाली कंपनी है। आप सम्मानित लोगों के नाम और उनकी कंपनी के नाम से इस बात को आसानी से समझ सकते हैं। ये सारे लोग आम लोगों के लिए कोई बहुत सस्ता या कम मुनाफा लेकर कोई भी सुविधा मुहैया नहीं करा रहे हैं। ये अपने उत्पाद की मामूली लागत पर बहुत भारी-भरकम मुनाफा कूट रहे हैं। यह बात हमको और आपको शायद कम पता हो लेकिन इनके बारे में तमाम सरकारों को सबकुछ पता है। लेकिन इन सबके बावजूद 63 साल के दौरान किसी पार्टी की सरकार ने मुनाफे पर नियंत्रण पाने के लिए कोई कायदा-कानून नहीं बनाया। सरकार ने मुनाफा कूटने वाली कंपनियों को औने-पौने दामों में जमीन दी। उनके पक्ष में अपनी तमाम एजेंसियों के माध्यम से श्रम कानून की धज्जियां उड़ाई। उन्हें स्थापित करने के लिए पारंपरिक छोटे और मंझौले उद्योगों को बरबाद किया। कश्मीर से लेकर भागलपुर और उत्तर-पूर्व तक के सभी पारंपरिक उद्योगों को सरकारी उपेक्षा की वजह से दर-ब-दर होने की नौबत से दो-चार होना पड़ा है। बनारस और भदोही के हुनरमंद हाथों को ढंग से रोजी-रोटी मयस्सर नहीं होती है। लेकिन भारत से बाहर जाने वाले प्रतिनिधि दल में शामिल लोग हमेशा यहां की परंपरा और संस्कृति का ढोल पीटते रहे हैं। वे बाहर के लोगों से मुलाकात पर रस्म अदायगी के तौर पर कुछ-न-कुछ उपहार स्वरूप ले जाते रहे हैं। मिसाल के तौर पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जब अमेरिकी राष्ट्रपति से मिलने पहली बार अमेरिका गए तब उनकी पत्नी मिशेल ओबामा के लिए कश्मीर की पश्मीना शाॅल लेकर गए थे। लेकिन तमाम सरकारों ने पश्मीना शाॅल बनाने वाले कश्मीर और हिमाचल प्रदेश के कारीगरों के लिए बुनियादी सुविधाओं में इजाफा हो, इसके लिए कुछ खास नहीं किया है। बल्कि तमाम सरकार और ज्यादातर नेताओं ने इनके दम पर अपनी राजनीति की रोटियां सेंकने की भरपूर कोशिश जरूर की है। वहां के सांस्कृतिक और राजनीतिक ताने-बाने को छिन्न-भिन्न करने की कोशिश जरूर की है।
कोई भी पारंपरिक कारोबार बगैर सांस्कृतिक और राजनीतिक स्थिरता के मजबूती से टिका नहीं रह सकता है। राजनीतिक स्थिरता के बगैर स्थानीय संस्कृति और उसपर आधारित उद्योग कभी नहीं पनप सकते हैं। संस्कृति और परंपरा को विकसित होने देने में राजनीति बड़े स्तर पर अपनी भूमिका का निर्वाह करती है। मुगलकालीन जमाने या औपनिवेशिक काल के दौरान संस्कृतियों को पनपने और बढ़ने का मौका राजनीतिक तौर पर संरक्षण हासिल होने की वजह से मिला। मुगलकालीन जमाने में खान-पान, संगीत, कला, भवन निर्माण को बढ़ावा इसलिए मिला क्योंकि इन क्षेत्रों से जुड़े लोगों को दरबार में विशेष दर्जा मिला हुआ था। उन्हें भरपूर ईनाम और सम्मान दिए जाते थे। भारत सरकार बड़े व्यापारियों और उद्योगपतियों को सम्मानित करके साफ तौर यह संदेश देना चाहती है कि वह पारंपरिक तौर पर छोटे व मझोले व्यापार उद्योगों की जगह अरबों-खरबों वाली इंडस्ट्री को स्थापित करेगी। सरकार ने इस घोषणा के जरिये आम आदमी को यह बताने की कोशिश की है कि इस चमकते भारत में उसकी कोई जगह नहीं रह गई है।

लेखक, पत्रकार हैं।

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